|| श्री गणेशाय नमः ||
|| श्री हरिः ||
गीता प्रेस : सन् 1923 से सत्य एवं शान्ति हेतु मानव समाज की सेवा में

नित्य प्रार्थना

कर प्रणाम तेरे चरणों में लगता हूँ अब तेरे काज ।
पालन करने को आज्ञा तव मैं नियुक्त होता हूँ आज ॥
अन्तर में स्थित रहकर मेरे बागडोर पकड़े रहना ।
निपट निरंकुश चंचल मन को सावधान करते रहना ॥

अन्तर्यामी को अन्त:स्थित देख सशंकित होवे मन ।
पाप वासना उठते ही हो नाश लाज से वह जलभुन ॥
जीवों का कलरव जो दिनभर सुनने में मेरे आवे ।
तेरा ही गुणगान जान मन प्रमुदित हो अति सुख पावे ॥

तू ही है सर्वत्र व्याप्त हरि तुझमें सारा यह संसार ।
इसी भावना से अंतर भर मिलूँ सभी से तुझे निहार ॥
प्रतिपल निज इन्द्रिय समूह से जो कुछ भी आचार करूँ ।
केवल तुझे रिझाने को बस तेरा ही व्यवहार करूँ ॥

कर प्रणाम तेरे चरणों में लगता हूँ अब तेरे काज ।
पालन करने को आज्ञा तव मैं नियुक्त होता हूँ आज ॥

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